प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
उत्तर-
श्रेणियों में प्रचलित रीति-रिवाजों तथा कानूनों को धर्मग्रन्थों में श्रेणी धर्म की संज्ञा दी गई है। इन नियमों को राज्य की ओर से मान्यता मिली हुई थी तथा श्रेणी के प्रत्येक सदस्य को इसका पालन अनिवार्यतः करना पड़ता था। इसका उल्लंघन अपराध माना जाता था।
यदि कोई सदस्य श्रेणी धर्म का पालन नहीं करता था तो उसे जुर्माना देना होता था अथवा वह नगर से निष्कासित भी किया जा सकता था। बृहस्पति का कथन है कि श्रेणी के प्रधान, धर्म के अनुसार अपने सदस्यों के साथ कड़ा या मृदु जैसा भी व्यवहार करे, उसे राजा को अनुमोदित करना चाहिए। मनु ने व्यवस्था दी है कि राजा को जाति, धर्म, कुल, श्रेणी धर्म की भली-भाँति छानबीन करने के पश्चात् ही उनके अनुकूल अपने राजकीय नियमों की स्थापना करनी चाहिए। अर्थशास्त्र में विहित है कि "राजा को श्रेणी धर्म का आदर करना चाहिए।" नारद, विष्णु, याज्ञवल्क्य आदि स्मृतिकारों ने राजा को उपदेश दिया है कि वह संघों में प्रचलित रीति-रिवाजों का पालन करवाये। बृहस्पति ने चेतावनी दी है कि यदि “ देशान्तर, जात्याचार और कुलाचार का पालन नहीं होता तो प्रजा में असन्तोष फैलेगा और उससे सम्पत्ति कम होगी।" इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि श्रेणियाँ अपनी इच्छानुसार कार्य करने के लिए स्वतन्त्र थीं और राजा को उनका निर्णय स्वीकार करना पड़ता था। केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही राजा श्रेणियों के कार्य में हस्तक्षेप कर सकता था। इस प्रकार की परिस्थितियाँ संघ के सदस्यों में पारस्परिक विवाद होने अथवा किसी सदस्य द्वारा संघ को हानि पहुँचाने का प्रयास करने पर उत्पन्न होती थीं। ऐसा लगता है कि श्रेणी के प्रधान द्वारा दण्डित कोई भी राजा के पास अपील कर सकता था तथा यह प्रमाणित हो जाने पर कि अध्यक्ष का व्यवहार नियम विरुद्ध है, राजा उसे रोकता अथवा आवश्यकता पड़ने पर दण्ड दे सकता था, किन्तु इस प्रकार की परिस्थिति बहुत कम उत्पन्न होती थी। सामान्य परिस्थिति में श्रेणियाँ पर्याप्त स्वायत्तता का उपभोग करती थीं।
श्रेणी संगठन की कार्यकारी परिषद् को महत्त्वपूर्ण अधिकार प्राप्त थे। प्रबन्ध अधिकारी अन्तिम रूप से समूह के प्रति उत्तरदायी माने जाते थे। श्रेणी की सामान्य सभा की बैठक समय-समय पर अपने कार्यालय में होती थी। सदस्यों की उपस्थिति के लिए नियम निश्चित थे। ढोल-पीटकर सदस्यों को बैठक में उपस्थित होने की सूचना दी जाती थी। श्रेणी में नये सदस्यों को निकालने के मामले साधारण सभा द्वारा ही तय किये जाते थे। सदस्यों को भाषण की स्वतन्त्रता होती थी। सामान्य सभा अपने किसी भी ऐसे अधिकारी को हटा सकती थी जिसकी गतिविधियाँ सार्वजनिक हित के प्रतिकूल हों। राजा की अनुमति इसके लिए आवश्यक नहीं थी, उसे केवल निष्कासन की सूचना मात्र दे दी जाती थी।
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